Zakir Hussain death

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Zakir Hussain death

Zakir Hussain death:


उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन परसों हुआ:परिवार ने की आज पुष्टि की, 73 साल की उम्र में सैन फ्रांसिस्को में ली अंतिम सांस।


विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई है। उनके निधन की खबर रविवार रात से आ रही थी, लेकिन सोमवार की सुबह परिवार ने इसकी पुष्टि की,वे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे और 13 से 14 दिनों से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे।

इधर सिंगर तलत अजीज ने बताया है कि उस्ताद जाकिर हुसैन की मृत्यु परसों, यानी 14 दिसंबर को ही हो गई थी।परिवार ने यह बात छिपाए रखी। उनके भाई बीती रात अमेरिका के लिए रवाना हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ 18 दिसंबर को जाकिर हुसैन को सुपुर्दे-ए-खाक किया जा सकता है।रविवार देर रात उनकी मृत्यु की अफवाह उड़ी थी।



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रविवार देर रात भी उनके को उनकी मृत्यु की खबर आई थी। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी मृत्यु संबंधी पोस्ट शेयर की थी, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया था। इसके बाद जाकिर की बहन और उसके भांजे आमिर ने जाकिर हुसैन के मृत्यु की खबर को झूठा बताया था।

उस्ताद जाकिर हुसैन को 2023 में पद्म विभूषण सम्मान मिला उस्ताद जाकिर हुसैन को 988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला था। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग प्रकार के एल्बम के लिए 3 ग्रैमी भी जीते।


उस्ताद जाकिर हुसैन को 2023 में पद्म विभूषण सम्मान मिला उस्ताद जाकिर हुसैन को 988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला था। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग प्रकार के एल्बम के लिए 3 ग्रैमी भी जीते।

उस्ताद जाकिर हुसैन 9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था। उन्होंने अपना पहला एल्बम 1973 में 'लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड' लॉन्च किया था। पहला ग्रैमी अवॉर्ड उस्ताद जाकिर हुसैन को 2009 में मिला। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग एल्बम के लिए 3 ग्रैमी जीते। इस प्रकार जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड जीते।


जाकिर हुसैन के पिता का नाम उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी और मां का नाम बावी बेगम था। उस्ताद अल्लारक्खा अपने समय के बेहद जाने माने तबला वादक थे। उन्होंने ही जाकिर हुसैन को संगीत की शुरुआती तालीम दी। जाकिर हुसैन की शुरुआती शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल में मिली थी। जाकिर हुसैन ग्रेजुएशन मुंबई के ही सेंट जेवियर्स कॉलेज से किया था।

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 जाकिर हुसैन के अंदर बचपन से ही धुन बजाने का हुनर था। वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे। यहां तक कि बर्तनों को भी नहीं छोड़ते थे। तवा, हांडी और थाली, जो भी मिलता, वे उस पर हाथ फेरने लगते थे।

 जाकिर हुसैन 7 बार ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे, 4 बार पुरस्कार जीता।अपनी गोद में अपने तबले को रखकर ट्रेन में यात्रा किया करते थे। पैसों की कमी के कारण ही वे जनरल कोच में चढ़ जाते थे। सीट न मिलने पर फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। तबले पर किसी का पैर न लगे, इसलिए उसे अपनी गोद में लेकर सो जाते थे।


12 साल की उम्र में जाकिर हुसैन को 5 रुपए मिले थे जब वे 12 साल के थे, तब अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। उस कॉन्सर्ट में पंडित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान,अकबर खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के कलाकार पहुंचे थे।

जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ स्टेज पर गए। कॉन्सर्ट खत्म होने के बाद जाकिर को 5 रुपए मिले थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया- मैंने अपने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन वे 5 रुपए सबसे कीमती थे।


शशि कपूर के साथ हॉलीवुड फिल्म में जाकिर हुसैन ने कुछ फिल्मों में एक्टिंग भी की है। जाकिर हुसैन ने 1983 की एक ब्रिटिश फिल्म हीट ( heat and dust )से डेब्यू किया था। इस फिल्म में शशि कपूर ने भी काम किया था।
जाकिर हुसैन ने 1998 की एक फिल्म साज में भी काम किया था। इस फिल्म में जाकिर हुसैन के अपोजिट शबाना आजमी थीं।



जाकिर हुसैन को फिल्म मुगल-ए-आजम (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल भी ऑफर हुआ था, लेकिन पिता उस्ताद अल्लारक्खा ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया। वे चाहते थे कि उनका बेटा संगीत पर ही ध्यान दे।

इसी प्रकार भारत का एक और अनमोल रतन अमर हो गया।
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